बुरा ना मानो होली है…यह जुमला नहीं देता आपको बदतमीजी करने का लाइसेंस

बासंती बयार के बीच दिलों में सरसता-मस्ती भरने वाले होली पर्व का संदेश है बुराइयों का दहन करना। असत्य पर सत्य की विजय। होली मनाने से जुड़ी लगभग सभी कथाओं का सार यही है। सत्य की जीत का आनंद होली मनाने, देव पूजा, गीतों, रंगों और हंसी-ठिठोली के रूप में प्रकट होता रहा है। होली के पर्व को मनमुटाव भुलाकर सभी के साथ पर्व मनाने के लिए कहा जाता है कि “बुरा ना मानो होली है।” हालांकि कुछ लोगों ने इस जुमले की परिभाषा को अपने हिसाब से बदल लिया और उनके मुताबिक होली पर लोगों पर जबरन रंग लगाने और पानी फेंककर मात्र “बुरा ना मानो होली है” कह देना सब ठीक कर देता है। इसी मानसिकता के चक्कर में लोग यह भूल गए कि होली को किसी के साथ मनाने के लिए सामने वाले की दिलचस्पी का होना भी मायने रखता है।


हिमशिखर धर्म डेस्क

रंगों का त्‍यौहार होली मनाने की सभी ने पूरी तैयारियां कर दी हैं। यह पर्व बुराई पर अच्‍छाई की जीत और बसंत के आगमन के महत्‍व को दर्शाता है। रंगों के त्योहार होली की शुरूआत आज देर रात को होने वाले होलिका दहन के साथ होगी।

हमारे दार्शनिक ग्रंथों में कहा गया है कि आत्मा और परमात्मा से संबंधित शाश्वत ज्ञान का अनुगमन करना ही अध्यात्म विद्या है। अध्यात्मिक होने का मतलब भौतिकता से परे जीवन का अनुभव करना है। कई बार हम धर्म और अध्यात्म को एक ही समझने लगते हैं, पर अध्यात्म धर्म से बिलकुल अलग है। ईश्वरीय आनंद की अनुभूति करने का मार्ग ही अध्यात्म है। अध्यात्म व्यक्ति को स्वयं के अस्तित्व के साथ जोड़ने और उसका सूक्ष्म विवेचन करने में समर्थ बनाता है। वास्तव में आध्यात्मिक होने का अर्थ है कि व्यक्ति अपने अनुभव के धरातल पर यह जानता है कि वह स्वयं अपने आनंद का स्रोत है। अध्यात्मिकता का संबंध हमारे आंतरिक जीवन से है। इसलिए होली मानव का परमात्मा से एवं स्वयं से स्वयं के साक्षात्कार का पर्व है। होली रंगों का त्यौहार है। रंग सिर्फ प्रकृति और चित्रों में ही नहीं हमारी आंतरिक ऊर्जा में भी छिपे होते हैं, जिसे हम आभामंडल कहते हैं। एक तरह से यही आभामंडल विभिन्न रंगों का समवाय है, संगठन है। हमारे जीवन पर रंगों का गहरा प्रभाव होता है, हमारा चिन्तन भी रंगों के सहयोग से ही होता है। हमारी गति भी रंगों के सहयोग से ही होती है। हमारा आभामंडल, जो सर्वाधिक शक्तिशाली होता है, वह भी रंगों की ही अनुकृति है। पहले आदमी की पहचान चमड़ी और रंग-रूप से होती थी। आज वैज्ञानिक दृष्टि इतनी विकसित हो गई कि अब पहचान त्वचा से नहीं, आभामंडल से होती है। होली का अवसर अध्यात्म के लोगों के लिये ज्यादा उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसलिये अध्यात्म एवं योग केे विशेषज्ञ विभिन्न रंगों के ध्यान एवं साधना के प्रयोगों से आभामंडल को सशक्त बनाते हैं। इस तरह होली कोरा आमोद-प्रमोद का ही नहीं, अध्यात्म का भी अनूठा पर्व है।

होली के अवसर पर प्रकृति सारी खुशियां स्वयं में समेटकर दुलहन की तरह सजी-सवरी होती है। पुराने की विदाई होती है और नया आता है। पेड-पौधे भी इस ऋतु में नया परिधान धारण कर लेते हैं। बसंत का मतलब ही है नया। नया जोश, नई आशा, नया उल्लास और नयी प्रेरणा- यह बसंत का महत्वपूर्ण अवदान है और इसकी प्रस्तुति का बहाना है होली जैसा अनूठा एवं विलक्षण पर्व। मनुष्य भीतर से खुलता है वक्त का पारदर्शी टुकड़ा बनकर, सपने सजाता है और उनमें सचाई का रंग भरने का प्राणवान संकल्प करता है। इसलिय होली को वास्तविक रूप में मनाने के लिये माहौल भी चाहिए और मन भी। तभी हम मन की गंदी परतों को उतार कर न केवल बाहरी बल्कि भीतर परिवेश को मजबूत बना सकते हैं।

होली सिर्फ एक प्रेम और रंगों का त्यौहार नहीं बल्कि बुराई पर अच्छाई की जीत का त्यौहार है। जरा देखिए कि दशहरा यानि कि विजयदशमी बुराई पर अच्छाई का त्यौहार है। इसी से जुड़ी दिवाली है जो बुराई पर जीत से जुड़ी होने के अगले पग के साथ आगे चलती है। चौदह साल का वनवास और रावण पर विजय के बाद भगवान राम की जब अयोध्या वापसी होती है तो उनके सम्मान में दीये जलाकर लोग खुशी व्यक्त करते हैं। सच तो यह है कि आज के कंप्यूटर और मोबाइल के जमाने में हमारी नई पीढ़ी को पता होना चाहिए कि होली बुराई पर अच्छाई का त्यौहार भी है।

होली का त्यौहार की सबसे प्रसिद्ध कथा प्रह्लाद और होलिका की कथा से जुडा हुआ है। प्रह्लाद के पिता दैत्यराज हिरण्यकश्यप ने तपस्या कर देवताओं से यह वरदान प्राप्त कर लिया कि वह न तो पृथ्वी पर मरेगा न आकाश में, न दिन में मरेगा न रात में, न घर में मरेगा न बाहर, न अस्त्र से मरेगा न शस्त्र से, न मानव से मारेगा न पशु से। इस वरदान को प्राप्त करने के बाद वह स्वयं को अमर समझ कर नास्तिक और निरंकुश हो गया।

वह चाहता था कि उनका पुत्र भगवान नारायण की आराधना छोड़ दे, परन्तु प्रह्लाद इस बात के लिये तैयार नहीं था। हिरण्यकश्यपु ने उसे बहुत सी प्राणांतक यातनाएं दीं लेकिन वह हर बार बच निकला। हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जलेगी।

अतः उसने होलिका को आदेश दिया के वह प्रह्लाद को लेकर आग में प्रवेश कर जाए जिससे प्रह्लाद जलकर मर जाए। परन्तु होलिका का यह वरदान उस समय समाप्त हो गया जब उसने भगवान भक्त प्रह्लाद का वध करने का प्रयत्न किया। होलिका अग्नि में जल गई परन्तु नारायण की कृपा से प्रह्लाद का बाल भी बांका नहीं हुआ। इस घटना की याद में लोग होलिका जलाते हैं और उसके अंत की खुशी में होली का पर्व मनाते हैं। कहने का मतलब यह है कि बुराई कितनी भी बड़ी क्यों न हो अच्छाई के सामने बहुत छोटी है। भगवान ने समय समय पर अवतार लेकर हमें भी यही संदेश दिया है कि बुराई से दूर रहो और सदा अच्छा काम करो।

होली मन के उल्लास के साथ प्रेम भाव को व्यक्त करने वाला पर्व है। चूंकि होली हर तरह के सामाजिक भेद को मिटाती है इसीलिए उसे उमंग, उल्लास, रोमांच और प्रेम के आह्वान के पर्व के रूप में अधिक जाना जाता है। कलुषित भावनाओं का होलिका दहन कर नेह की ज्योति जलाने और सभी को एक रंग में रंगकर बंधुत्व को बढ़ाने वाला यह त्योहार आज भारत के साथ दुनिया के उन देशों में भी मनाया जाता है जहां भारतवंशी हैं या फिर जहां भारतीय संस्कृति का प्रभाव है।

होली का संदेश है- प्रेम, बंधुत्व के साथ प्रकृति की महत्ता

होली मनाने के तरीके अलग-अलग हो सकते हैं, लेकिन उसका एक ही संदेश है- प्रेम, बंधुत्व के साथ प्रकृति की महत्ता। होली शीत ऋतु की विदाई और ग्रीष्म के आगमन का सांकेतिक पर्व है। बसंत के बाद इस समय पतझड़ के कारण साख से पत्ते टूटकर दूर हो रहे होते हैं। ऐसे में परस्पर एकता, लगाव और मैत्री को एक सूत्र में बांधने का संदेशवाहक यह पर्व पूरे परिवेश को एक अलग उमंग से भर देता है। फागुन की निराली बासंती हवाओं में संस्कृति के परंपरागत परिधानों में आंतरिक प्रेमानुभूति सुसज्जित होकर चहुंओर मस्ती का आलम बिखेरती है, जिससे दु:ख-दर्द भूलकर लोग रंगों में डूब जाते हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *