मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की पचंमी पर भगवान राम और माता सीता की विवाह वर्षगांठ के रूप में मनाई जाती है। इस बार विवाह पंचमी बेहद शुभ संयोग में मनाई जाएगी। आइए जानते हैं-
हिमशिखर धर्म डेस्क
सोमवार, 27 नवंबर को श्रीराम और सीता जी के विवाह की तिथि है, इसे विवाह पंचमी कहा जाता है। अगहन मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी पर ये पर्व मनाया जाता है। इस बार विवाह पंचमी पर चार शुभ योग एक साथ बन रहे हैं। इन योगों में धर्म-कर्म किए जा सकते हैं और किसी शुभ काम की शुरुआत की जा सकती है।
इस साल विवाह पंचमी पर सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 10.29 बजे से शुरू होगा। रवि योग सुबह 10.29 बजे से शुरू होगा। वृद्धि योग सुबह से लेकर शाम 6.05 बजे तक रहेगा। इनके साथ ध्रुव योग भी पूरे दिन रहेगा।
विवाह पंचमी पर बन रहे इन योगों में गृह प्रवेश, विवाह आदि मांगलिक कार्य किए जा सकते हैं। सर्वार्थ सिद्धि योग में शुरू किए काम जल्दी सिद्ध यानी सफल होते हैं। वृद्धि योग में शुरू किए गए काम वृद्धि यानी बढ़ोतरी देने वाले होते हैं। रवि योग में काम की शुरुआत करने से सूर्य ग्रह की कृपा मिलती है, जिससे सभी काम बिना बाधा के पूरे होते हैं।
विवाह पंचमी पर करें ये शुभ काम
इस पर्व पर श्रीराम, सीता के साथ ही लक्ष्मण जी और हनुमान जी की भी पूजा जरूर करें। हनुमान जी के सामने दीपक जलाकर सुंदरकांड या हनुमान चालीसा का पाठ करें।
सोमवार को श्रीराम चरित मानस का या इस ग्रंथ के किसी एक कांड का पाठ करें। श्रीराम के नाम का जप कर सकते हैं। सीता-राम, सीता-राम मंत्र का जप किया जा सकता है।
सोमवार को विवाह पंचमी होने से इस तिथि पर शिव जी और देवी पार्वती की भी विशेष पूजा करें।
इस दिन किसी जरूरतमंद सुहागिन को सुहाग का सामान जैसे चूड़ियां, साड़ी, चुनरी, कुमकुम, बिंदिया आदि चीजें दान करें।
विवाह पंचमी कथा
पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा जनक की पुत्री माता सीता ने शिवजी का धनुष उठा लिया था जिसके बाद राजा जनक ने यह निर्णय लिया कि जो भी व्यक्ति भगवान शिव के धनुष को उठाएगा, वो अपनी बेटी का विवाह उसी से कराएंगे। क्योंकि परशुराम के अतिरिक्त उस धनुष को कोई और उठा नहीं सका था। इसके बाद जब सीता माता का स्वयंवर रखा गया तो उसमें दूर-दूर से राजकुमार आए, लेकिन कोई भी उस धनुष को उठा नहीं पाया। अंत में राजा जनक हताश हो गए और उन्होंने कहा कि क्या कोई भी मेरी पुत्री के योग नहीं है? तब महर्षि वशिष्ठ ने भगवान राम को शिवजी का धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने को कहा. गुरु की आज्ञा का पालन करते हुए भगवान राम ने शिव जी के धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाने की कोशिश तो की लेकिन इसी कोशिश में धनुष टूट गया। तब सीता जी का विवाह भगवान राम से हुआ।