सुप्रभातम्: अतिथि सत्कार की महिमा

हिमशिखर धर्म डेस्क

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किसी बड़े जंगल में एक बहेलिया रहता था। वह प्रतिदिन जाल लेकर वन में जाता और पक्षियों को मारकर उन्हें बाजार में बेच दिया करता था। उसके इस भयानक तथा क्रूर कर्म के कारण उसके मित्रों एवं सम्बन्धियों–सबने उसका परित्याग कर दिया था, किन्तु उस मूढ़ को अन्य कोई वृत्ति अच्छी ही नहीं लगती थी।

 एक दिन वह वन में घूम रहा था, तभी बड़ी तेज आँधी उठी और देखते-देखते मूसलाधार वृष्टि होने लगी। आँधी और वर्षा के प्रकोप से सारे वनवासी जीव त्रस्त हो उठे। ठंड से ठिठुरते और इधर-उधर भटकते हुए बहेलिये ने शीत से पीड़ित तथा भूमि पर पड़ी हुई एक कबूतरी को देखा और उसे उठाकर अपने पिंजरेमें डाल लिया। चारों ओर गहन अन्धकार के कारण बहेलिया एक सघन पेड़ के नीचे पत्ते बिछाकर सो गया।

उसी वृक्ष पर एक कबूतर निवास करता था, जो दाना चुगने गयी, अभी तक वापस न लौटी अपनी प्रियतमा कबूतरी के लिये विलाप कर रहा था। उसका करुण विलाप सुनकर पिंजरे में बन्द कबूतरी ने उसे अभ्यागत बहेलिये के आतिथ्य सत्कार की सलाह दी और कहा–प्राणनाथ ! मैं आपके कल्याण की बात बता रही हूँ, उसे सुनकर आप वैसा ही कीजिये। इस समय विशेष प्रयत्न करके एक शरणागत प्राणी की आपको रक्षा करनी है। यह व्याध आपके निवास स्थान पर आकर सर्दी और भूख से पीड़ित होकर सो रहा है, आप इसकी सेवा कीजिये, मेरी चिन्ता न कीजिये। पत्नी की धर्मानुकूल बातें सुनकर कबूतर ने विधि पूर्वक बहेलिये का सत्कार किया और उससे कहा–’आप हमारे अतिथि हैं, बताइये मैं आपकी क्या सेवा करूँ ?”

इस पर बहेलिये ने कबूतर से कहा–’इस समय मुझे सर्दी का कष्ट है, अतः हो सके तो ठंड से बचाने का कोई उपाय कीजिये।’

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कबूतर ने शीघ्र ही बहुत-से पत्ते लाकर बहेलिये के पास रख दिये और यथाशीघ्र लुहार के घर से अग्नि लाकर पत्तों को प्रज्वलित कर दिया। आग तापकर बहेलिये की शीतपीड़ा दूर हुई। तब उसने कबूतर से कहा–’मुझे भूख सता रही है, इसलिये कुछ भोजन करना चाहता हूँ।

यह सुनकर कबूतर उदास होकर चिन्ता करने लगा। थोड़ी देर सोचकर उसने सूखे पत्ते में पुनः आग लगायी और हर्षित होकर बोला–’मैंने ऋषियों, महर्षियों, देवताओं और पितरों तथा महानुभावों के मुख से सुना है कि अतिथि की पूजा करने में महान् धर्म है। अतः आप मुझे ही ग्रहण करने की कृपा कीजिये।’

इतना बोलकर तीन बार अग्नि की परिक्रमा करके वह कबूतर आग में प्रविष्ट हो गया। महात्मा कबूतर ने देहदान द्वारा अतिथि सत्कार का ऐसा उज्ज्वल आदर्श प्रस्तुत किया कि व्याध ने उसी दिन से अपना निन्दित कर्म छोड़ दिया।

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कबूतर तथा कबूतरी–दोनों को आतिथ्यधर्म के अनुपालन से उत्तमलोक प्राप्त हुआ। दिव्य रूप धारणकर श्रेष्ठ विमान पर बैठा हुआ वह पक्षी अपनी पत्नी सहित स्वर्गलोक चला गया।

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